Saturday, November 3, 2018

हसरतों का बाज़ार


सरतों का आज पूरा बाज़ार लगा था |
उसी में से मैंने फिर तुझे चुना था। मेरी इसी उड़ान का फलसफा हो तुम |
मैंने कब कहा कि मेरा अंतिम परिणाम हो तुम |
रहा वक़्त तो इसी बात की हम सफाई देंगे,
तुझसे लिया हुआ एक एक लम्हा लौटा देंगे |
हमने तो खुदा से बस यूंही दुआ मांगी थी हमने,
नहीं जाना की तेरी यह कुर्बानी थी |
फिर से कभी भी दुआओ में याद कर लेना,
हमें बस उसी वक्त तुम्हारे दिए लम्हे लौटा देंगे तुम्हे |

लेखिका : मयुरी गोस्वामी


तो मित्रो कैसी लगी यह कविता ? कॉमेंट करके बताना और हा मुझे फ़ोलो भी कर देना



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